Thursday, July 23, 2009
सम्मान मेरे, अभिमान मेरे, सर्वोपरि भगवान्
पापा तेरी बड़ी ज़रूरत, मुझको सुनते रहना तुम
राह कठिन सी लगती है, साथ मेरे ही रहना तुम
एक अकेले महापुरुष से, संभव मेरे सब विचार हैं
एक तुम्हारी उपस्थिति से, सपने मेरे सब साकार हैं
मैं नूतन अंकुर जीवन का, बरगद मेरी बगिया के तुम
राह कठिन सी लगती है, साथ मेरे ही रहना तुम
नहीं पता क्या कब क्यूँ कहना है, लगता है तुम तो हो ना
नहीं पता क्या कब क्यूँ करना है, लगता है तुम तो हो ना
स्थिर, शिथिल, और मूक हूँ, गति हो वचन हो मेरे तुम
राह कठिन सी लगती है, साथ मेरे ही रहना तुम
भगवन को जाना तुमसे ही, और जाना वो तुम में ही है
दुनिया को जाना तुमसे ही, और जाना वो तुम में ही है
जब जब लगा बिखर जाऊंगा, रहे अडिग आधार ही तुम
राह कठिन सी लगती है, साथ मेरे ही रहना तुम
हर विपरीत परिस्थिति में, मैं अनभिज्ञ अज्ञान रहा
चला तो, तू धरती और तू मेरा आसमान रहा
सम्मान मेरे, अभिमान मेरे और सर्वोपरि भगवान् ही तुम
राह कठिन सी लगती है, साथ मेरे ही रहना तुम
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5 comments:
Bahut sundar!
bahut acchi hai.tum hamesha acha hi likhte ho.......
Ati sunder...
ma pa ke liye likh liya ... apni kalpana ke liye bhi.. bahan ke liye bhi likh hi dalo.. bahano ke liye log kam likhte hain..
It was a very typical Shailendra Marked....
Very nice, actually Awesome!
Adbhut,very nice & touching.
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