Monday, November 1, 2010

एक दौर, और निकल गया...

देखते ही देखते,
कुछ उठाते, फेंकते
कुछ संजोये और खोये लम्हों में
एक दौर, और निकल गया...

उम्र का दर्ज़ा बढ़ा
और बढ़े कुछ हाथ
कुछ गए कुछ दूर से
कुछ ने संभाला साथ
अपनों की आवाजाही में
एक दौर, और निकल गया...

लोग बदले, शहर बदले
रात दिन के पहर बदले
एक खालीपन न बदला
स्वाद और सब रंग बदले
इस बदलने की होड़ में
एक दौर, और निकल गया...

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